ssc cgl previous paper pdf download,railway ntpc previous paper,science pdf,history pdf,current affairs,gk notes,vyapam previous papers pdf,free download pdf,mpsi notes,mp constable previous paper pdf,daily current affairs,geography ,constitution,world history

Saturday, March 14, 2020

Operation vanilla । Trust bill by direct tex dispute । Global intellectual property index । patent cooperative treat । Treadmark copyright and india । Genome mapping project । Climate change and agriculture

भारतीय नौसेना की शांतिकालीन रणनीति
हाल ही में भारत सरकार ने हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित मेडागास्कर (Madagascar) में चक्रवात डायने (Diane) से प्रभावित लोगों को सहायता और राहत उपलब्ध कराने के लिये ऑपरेशन वनीला (Operation Vanilla) के तहत भारतीय नौसेना के पोत आईएनएस ऐरावत (INS Airavat) को भेजा।
मुख्य बिंदु:
चक्रवात के कारण आई बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिये मेडागास्कर के राष्ट्रपति एंड्री राजोइलिना (Andry Rajoelina) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मदद की अपील के बाद भारतीय नौसेना द्वारा मेडागास्कर के लोगों को मदद पहुँचाई गई।
 
शांतिकालीन रणनीति के घटक
(Component Of Peacetime Strategy) हाल के वर्षों में भारत हिंद महासागरीय क्षेत्र में भारतीय नौसेना की शांतिकालीन रणनीति के तहत मानवीय सहायता प्रदाता के रूप में उभरा है। मोज़ांबिक को मदद: मार्च 2019 में जब चक्रवात ईदाई (Idai) ने मोज़ाम्बिक में तबाही मचाई तब भारतीय नौसेना ने मोज़ांबिक की मदद के लिये चार युद्धपोतों को तैनात किया था। इंडोनेशिया को मदद: वर्ष 2019 में जब इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर उच्च तीव्रता के भूकंप आया तब भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन समुद्र मैत्री (Operation Samudra Maitri) के तहत इंडोनेशिया को तत्काल चिकित्सा सहायता पहुँचाई थी। वर्ष 2019 में भारतीय नौसेना ने टाइफून हागिबिस (Hagibis) से प्रभावित जापान को मदद पहुँचाने के लिये दो युद्धपोत भेजे थे। भारतीय नौसेना का यह नया मानवीय दृष्टिकोण हिंद महासागरीय क्षेत्र में भारतीय प्रधानमंत्री के विज़न 'सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास- Security and Growth for all in the Region) की एक अभिव्यक्ति है।
 
सागर- क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा एवं संवृद्धि
(SAGAR- Security And Growth for All in the Region):
सागर (SAGAR) कार्यक्रम को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मॉरीशस यात्रा के दौरान वर्ष 2015 में नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने हेतु शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि भी सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है। इस कार्यक्रम का मुख्य सिद्धांत; सभी देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री नियमों और मानदंडों का सम्मान, एक-दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशीलता, समुद्री मुद्दों का शांतिपूर्ण समाधान तथा समुद्री सहयोग में वृद्धि इत्यादि है।
हिंद महासागरीय क्षेत्र में भारत क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता के रुप में- पिछले कुछ वर्षों में भारत ने हिंद महासागरीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर राहत एवं बचाव मिशन को अंजाम देकर स्वयं को ‘क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता’ (Regional Security Provider) के रूप में स्थापित किया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2004 में भारत में आई सुनामी के बाद भारतीय नौसेना की मानव केंद्रित समुद्री सुरक्षा रणनीति पर अधिक ज़ोर दिया गया इसके तहत पहली बार भारतीय नौसेना के कमांडरों ने हिंद महासागरीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर राहत एवं बचाव मिशन के महत्त्व को पहचाना। भारतीय नौसेना ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों की मदद के लिये अपनी वित्तीय स्थिति को मज़बूत किया है तथा विशेष उपकरणों की अधिक-से-अधिक तैनाती के साथ जटिल मिशनों को पूरा करने की क्षमता हासिल कर ली है।
जटिल मिशनों के अंतर्गत भारतीय नौसेना ने वर्ष 2015 में अदन की खाड़ी पर नियंत्रण को लेकर यमन में हुए संघर्ष के दौरान वहाँ फंसे 1500 भारतीयों और 1300 विदेशी नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकला था।
यमन संकट के तीन वर्ष बाद भारतीय नौसेना ने यमन के पास चक्रवात से प्रभावित सोकोत्रा (Socotra) द्वीप पर फंसे 38 भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकालने में मदद की थी। विश्लेषक मानते हैं कि इस तरह के मिशनों से भारत की सॉफ्ट पावर की छवि को मज़बूती मिलती है और इससे हिंद महासागरीय क्षेत्र में भारत को अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने में मदद मिलेगी।
 
चुनौतियाँ:
यद्यपि मानव केंद्रित सुरक्षा रणनीति के तहत हिंद महासागरीय देशों में सीमित नौसैनिकों की उपस्थिति भारत के लिये रणनीतिक क्षमता का निर्माण करती है किंतु विदेशी जलक्षेत्र में लंबे समय तक युद्धपोतों की उपस्थिति भागीदार देशों को चिंतित कर सकती है। विशेषज्ञों द्वारा भारतीय नौसेना की शक्ति को सूक्ष्म तरीके से रेखांकित करना चाहिये न कि किसी धारणा के आधार पर अर्थात् किसी मिशन के अंतर्निहित इरादे को भू-राजनीतिक लाभ लेने के तौर पर प्रदर्शित न होने दें।
 
क्षमता निर्माण और सहयोग की आवश्यकता:
गौरतलब है कि इन मिशनों के दौरान प्रदान की गई सहायता कुशल और लागत प्रभावी है इसके लिये समर्पित आपदा-राहत प्लेटफार्मों का उपयोग किया गया है। किंतु अमेरिका और चीन के विपरीत भारत नियमित युद्धपोतों एवं सर्वेक्षण जहाज़ों को चिकित्सा सहायता के किये उपयोग करता है। जबकि अमेरिका और चीन के इन्वेंट्री अस्पताल जहाज़ पूरी तरह से चिकित्सा सहायता के लिये सुसज्जित हैं।
भारत के कामचलाऊ आपदा-राहत जहाज़ अमेरिकी नौसेना के चिकित्सा जहाज़ यूएसएनएस मर्सी (USNS Mercy) या पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी के पीस आर्क (Peace Ark) से मेल नहीं खाते हैं जो विशेष चिकित्सा सेवाओं देने में सक्षम हैं।
अतः भारतीय नौसेना को हिंद-प्रशांत नौ सेनाओं विशेष रूप से अमेरिकी नौसेना, रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना और जापानी सेल्फ-डिफेंस फोर्सेज के साथ अधिक समन्वय की आवश्यकता है। इन देशों की नौ सेनाओं के पास मानवीय खतरों को कम करने के लिये अधिक अनुभव है और इनकी वित्तीय स्थिति भी अधिक मज़बूत है।
 
आगे की राह
चूंकि हिंद महासागरीय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाएँ लगातार और तीव्र होती जा रही हैं इसलिये भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता की भूमिका बढ़ने की संभावना है। इसके लिये भारतीय नौसेना के मानवीय सहायता मिशन एक बड़े सहकारी प्रयास के अंतर्गत समुद्री साझा क्षेत्र में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास विधेयक, 2020
हाल ही में बजट सत्र के दौरान सरकार ने संसद में प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास विधेयक, 2020 पेश किया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण के दौरान प्रत्यक्ष कर के विवादों के निपटारे हेतु ‘विवाद से विश्वास योजना’ की शुरुआत की है।
ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा पिछले वर्ष बजट में अप्रत्यक्ष करों से संबंधित विवादों को कम करने के लिये ‘सबका विश्वास योजना’ लाई गई थी और सरकार के अनुसार, इस योजना के परिणामस्वरूप 1,89,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया गया है।
प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास विधेयक, 2020
इस विधेयक का उद्देश्य प्रत्यक्ष कर संबंधी विवादों को तीव्र गति से हल करना है।
ध्यातव्य है कि वित्त मंत्री ने बजट में प्रत्यक्ष कर संबंधी विवादों के निपटारे हेतु विवाद से विश्वास योजना का उल्लेख किया है।
वर्तमान में विभिन्न अपीलीय मंचों यानी आयुक्त (अपील), आयकर अपीलीय अधिकरण, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में लगभग 4,83,000 प्रत्यक्ष कर से संबंधित मामले लंबित हैं। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्यक्ष कर क्षेत्र में मुकदमेबाज़ी को कम करना है।
इस विधेयक में लगभग 9.32 लाख करोड़ रुपए से जुड़े कर विवाद के मामलों के समाधान का प्रावधान है।
सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से विवादित कर का एक बड़ा हिस्सा तेज़ी से और सरल तरीके से वसूला जा सकेगा।
विवाद से विश्वास योजना
 प्रस्तावित विवाद से विश्वास योजना के तहत, एक करदाता को केवल विवादित करों की राशि का भुगतान करना होगा और उसे ब्याज एवं जुर्माने पर पूरी छूट मिलेगी, बशर्ते वह 31 मार्च, 2020 तक भुगतान करे।
31 मार्च, 2020 के बाद इस योजना का लाभ उठाने वालों को कुछ अतिरिक्त राशि का भुगतान करना होगा। हालाँकि यह योजना केवल 30 जून, 2020 तक मान्य रहेगी। यह योजना उन सभी मामलों पर भी लागू होती है जो किसी भी स्तर पर लंबित हैं।
 
विधेयक से संबंधित विवाद
विपक्ष ने विधेयक के हिंदी नाम के संदर्भ में आलोचना की है और तर्क दिया है कि सरकार विधेयक का नाम हिंदी में रखकर गैर-हिंदी भाषियों पर हिंदी भाषा को आरोपित करना चाहती है।
साथ ही विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया है कि यह विधेयक ईमानदार और बेईमान लोगों के साथ समान व्यवहार करता है।
सबका विश्वास योजना
यह योजना वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट में अप्रत्यक्ष कर संबंधी विवादों के निपटारे हेतु शुरू की गई थी।
सरकार को अंतिम गणना में सबका विकास योजना से 39,500 करोड़ रुपए जुटाने की उम्मीद थी। सबका विश्वास योजना से संबंधित एमनेस्टी विंडो 15 जनवरी, 2020 को बंद हो गई है और तब तक लगभग 90,000 करोड़ रुपए के करों के संबंध में करीब 1.90 लाख करोड़ आवेदन आए हैं। इस योजना की सफलताओं में से एक मोंडेलेज इंडिया फूड्स प्राइवेट लिमिटेड (जिसे पहले कैडबरी इंडिया के नाम से जाना जाता था) ने इस योजना के तहत सरकार के साथ हिमाचल प्रदेश के बद्दी (Baddi) में अपने कथित संयंत्र से संबंधित सबसे विवादास्पद कर विवादों में से एक का निपटारा किया है।
ध्यातव्य है कि फर्म पर 580 करोड़ रुपए (कर और जुर्माने को छोड़कर) की कर चोरी का आरोप लगाया गया था। अंततः मोंडेलेज ने इस स्कीम के तहत 20 जनवरी, 2020 को 439 करोड़ रुपए का भुगतान कर विवाद का निपटारा किया।
 
विवाद से विश्वास योजना के संभावित लाभ
ऐसे समय जब सरकार कर राजस्व में कमी कर रही है, तब इस योजना के माध्यम से विवादित कर की प्राप्ति सरकार के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है। चूँकि इसके पहले विवाद निपटारे में अत्यधिक समय के नुकसान के साथ दोनों पक्षों को अत्यधिक खर्च उठाना पड़ता था किंतु अब इस योजना के कारण करदाता एवं सरकार दोनों को फायदा होगा।

जेल सुधार
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति ने जेल सुधारों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2018 में जस्टिस अमिताव रॉय की अध्यक्षता में दोषियों के जेल से छूटने और पैरोल के मुद्दों पर उनके लिये कानूनी सलाह की उपलब्धता में कमी एवं जेलों की विभिन्न समस्याओं की जाँच करने के लिये एक समिति का गठन किया था। इस समिति में जस्टिस अमिताव रॉय के अतिरिक्त ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के IG और तिहाड़ जेल के DG शामिल थे।
समिति द्वारा उल्लिखित जेल की समस्याएँ
समिति के अनुसार, अंडर-स्टाफ जेलों में भीड़-भाड़ आम बात है तथा जेल में कैदी और जेल के गार्ड दोनों के मानवाधिकारों का उल्लंघन समान रूप से होता है। अंडरट्रायल कैदी अदालत में बिना सुनवाई के वर्षों तक जेल में बंद रहते हैं। जेलों में विचाराधीन कैदियों का अनुपात दोषियों के अनुपात से अधिक है। जेल विभाग में पिछले कुछ वर्षों से 30% से 40% रिक्तियाँ लगातार बनी हैं।
समिति की रिपोर्ट में रसोई में भोजन तैयार करने की प्रक्रिया को अत्यंत प्राचीन बताया गया है। किचन कंजस्टेड और अनहेल्दी (Congested and Unhygienic) हैं तथा यह स्थिति जेलों में वर्षों से बनी हुई है।
समिति द्वारा जेल सुधार के लिये सुझाए गए मुख्य बिंदु
समिति के अनुसार, प्रत्येक नए कैदी को जेल में उसके पहले सप्ताह के दौरान दिन में एक बार अपने परिवार के सदस्यों से फोन पर बात करने की अनुमति दी जानी चाहिये। इसके अतिरिक्त समिति द्वारा सुझाए गए अन्य सुझावों में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
जेल में खाना पकाने की आधुनिक सुविधाएँ होनी चाहिये।
आवश्यक वस्तुओं को खरीदने हेतु कैंटीन की व्यवस्था होनी चाहिये।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ट्रायल (Trial) की व्यवस्था होनी चाहिये।
चूँकि जेलों में विचाराधीन कैदियों का अनुपात दोषियों के अनुपात से अधिक है इसलिये समिति ने इस संदर्भ में सुझाव दिया है कि प्रत्येक 30 कैदियों के लिये कम-से-कम एक वकील होना चाहिये। साथ ही त्वरित मुकदमा (Speedy Trial) जेलों में अप्रत्याशित भीड़ को कम करने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। जेल विभाग में पिछले कुछ वर्षों से 30% से 40% रिक्तियाँ लगातार बनी हुई हैं इस दिशा में भी आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
आगे की राह
न्यायिक व्यवस्था को दुरुस्त करने की आवश्यकता है जिससे कि विचाराधीन कैदियों के मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके।
चूँकि कैदी मतदान के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते हैं इसलिये अक्सर वे राजनीतिक दलों के मुद्दों से बाहर रहते हैं, अतः समाज एवं राजनीतिक दलों को विचाराधीन कैदियों की सुरक्षा एवं मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दों पर संवेदनशीलता से विचार करना चाहिये। जेल में मिलने वाली सुविधाओं को आधुनिक रूप दिये जाने की आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान में उन्हें उपलब्ध सुविधाएँ अत्यंत निम्न स्तर की हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें आवश्यक कौशल परीक्षण दिया जाना चाहिये ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें, साथ ही उनके लिये आवश्यक शिक्षा की प्राप्ति हेतु विशेष कक्षाएँ भी आयोजित की जा सकती है।

वैश्विक बौद्धिक संपदा सूचकांक-2020
यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर (US Chambers of Commerce Global Innovation Policy Center) द्वारा जारी अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक-2020 में भारत को 53 देशों में 40वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
मुख्य बिंदु
    यह ‘वैश्विक बौद्धिक संपदा सूचकांक’ का आठवाँ संस्करण है जिसका शीर्षक आर्ट ऑफ़ द पॉसिबल (Art of the Possible) है। इस सूचकांक के शीर्ष पाँच देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, स्वीडन एवं जर्मनी है।
सूचकांक में शामिल 53 देशों की वैश्विक GDP में 90% की भागीदारी है।
इस वर्ष तीन और नई अर्थव्यवस्थाओं (कुवैत, ग्रीस, डोमिनिकन गणराज्य) को इस सूचकांक में शामिल किया गया है । सूचकांक में भारत के बौद्धिक संपदा और कॉपीराइट से संबंधित मुद्दों के संरक्षण से संबंधित स्कोर में भी सुधार देखा गया है। सूचकांक 50 से अधिक अद्वितीय संकेतकों के साथ प्रत्येक उस अर्थव्यवस्था के लिये बौद्धिक संपदा ढाँचे का मूल्यांकन करता है जो सबसे प्रभावी बौद्धिक संपदा प्रणालियों के माध्यम से अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये संकेतक किसी अर्थव्यवस्था के समग्र आईपी पारिस्थितिकी तंत्र का एक ढाँचा तैयार करते हुए सुरक्षा की नौ श्रेणियाँ प्रदान करते हैं-
1.    पेटेंट (Patents)
2.    कॉपीराइट (Copyrights)
3.    ट्रेडमार्क (Trademarks)
4.    डिज़ाइन का अधिकार (Design Rights)
5.    व्यापार में गोपनीयता (Trade Secrets)
6.    आईपी संपत्तियों का व्यावसायीकरण (Commercialization of IP Assets)
7.    प्रवर्तन (Enforcement)
8.    सर्वांगी दक्षता (Systemic Efficiency)
9.    सदस्यता और अंतराष्ट्रीय संधियों का अनुसमर्थन (Membership and Ratification of International Treaties)
 
नए संकेतक
यह सूचकांक बौद्धिक संपदा के संबंध में आने वाली नई चुनौतियों का सामना करने हेतु मानक निर्धारित करने का प्रयास करता है।
अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक के इस संस्करण में पाँच नए संकेतकों और पहले से मौजूद संकेतकों में दो अतिरिक्त संकेतकों को भी शामिल किया गया है जो निम्नलिखित हैं-
पादप विविधता सुरक्षा तथा सुरक्षा की अवधि (Plant Variety Protection, term of Protection)
आईपी-गहन उद्योग, राष्ट्रीय आर्थिक प्रभाव विश्लेषण (IP-Intensive Industries, National Economic Impact Analysis) पादपों की नई किस्मों की सुरक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन अधिनियम, 1991 की सदस्यता (Membership of the International Convention for the Protection of New Varieties of Plants, act of 1991)
साइबर अपराध पर सम्मेलन, 2001 की सदस्यता (Membership of the Convention on Cybercrime, 2001)
औद्योगिक डिज़ाइनों के अंतर्राष्ट्रीय पंजीकरण के संबंध में हेग समझौता (The Hague Agreement Concerning the International Registration of Industrial Designs) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिह्नों को पंजीकृत करने से संबंधित मैड्रिड समझौता प्रोटोकॉल (Protocol Relating to the Madrid Agreement Concerning the International Registration of Marks)

पेटेंट सहयोग संधि (Patent Cooperation Treaty) में भारत की स्थिति
वर्ष 2020 के इस सूचकांक में भारत 38.46% के स्कोर के साथ 53 देशों की सूची में 40वें स्थान पर रहा, जबकि वर्ष 2019 में 36.04% के स्कोर के साथ भारत 50 देशों की सूची में 36वें स्थान पर था।
सूचकांक में शामिल दो नए देशों, ग्रीस और डोमिनिकन गणराज्य का स्कोर भारत से अच्छा है। गौरतलब है कि फिलीपीन्स और उक्रेन जैसे देश भी भारत से आगे हैं। हालाँकि धीमी गति से ही सही भारत द्वारा किसी भी देश की तुलना में अपनी रैंकिंग में समग्र वृद्धि दर्ज की गई है।
 
भारत की स्थिति में सुधार के कारण
वैश्विक बौद्धिक संपदा सूचकांक में भारत के स्कोर के बढ़ने का मुख्य कारण देश में बौद्धिक संपदा संचालित नवाचार और रचनात्मकता में निवेश का बढ़ना है। सूचकांक के अनुसार, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति- 2016 (Intellectual Property Rights Policy) के पश्चात् नवाचार एवं संरचनात्मक निवेश पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
वर्ष 2016 के बाद से, भारत में पेटेंट और ट्रेडमार्क हेतु आवेदन करने की प्रक्रिया में तेज़ी आई है, भारतीय नवोन्मेषकों (Innovators) और सृजनकर्त्ताओं (Creators) के बीच बौद्धिक संपदा अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ी है तथा पेटेंट और ट्रेडमार्क के लिये पंजीकरण एवं अधिकारों को लागू करना अब आसान हो गया है।
इस सूचकांक में पिछले वर्ष के कई सुधारों पर भी प्रकाश डाला गया है जो भारत के समग्र बौद्धिक संपदा पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूती प्रदान करते हैं। ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर के अनुसार, भारत सर्वांगी दक्षता संकेतक (Systemic Efficiency indicator) में 28 अन्य अर्थव्यवस्थाओं से लगातार आगे बना हुआ है। इसका मुख्य कारण सरकार द्वारा बौद्धिक संपदा नीति निर्माण के दौरान हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करना और बौद्धिक संपदा संरक्षण के महत्त्व के बारे में ओर अधिक जागरूकता पैदा करने के लिये उठाए गए ठोस कदम है। छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों और बौद्धिक संपदा के उपयोग के लिये लक्षित प्रोत्साहन में भारत अग्रणी बना हुआ है।
 
ट्रेडमार्क, कॉपीराइट और भारत
वर्ष 2019 में, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा कॉपीराइट-उल्लंघन सामग्री की ऑनलाइन पहुँच को रोकने के लिये गतिशील निषेधाज्ञा (Dynamic Injunctions) का उपयोग किया गया था जिसके परिणामस्वरूप कॉपीराइट से संबंधित दो संकेतकों में भारत का स्कोर बढ़ा है। कॉपीराइट-उल्लंघन हेतु निषेधाज्ञाओं का उपयोग करने के मामले में भारत ब्रिटेन और सिंगापुर के साथ है। सूचकांक में भारत कॉपीराइट संकेतकों के संदर्भ में 24 अन्य देशों से आगे है।
 
GIPC के अनुसार भारत के समक्ष चुनौतियाँ:
GIPC द्वारा भारत हेतु कई चुनौतियों की पहचान की गई है जो इस प्रकार हैं-
पेटेंट की आवश्यकता
पेटेंट प्रवर्तन या लागू करना
लाइसेंस की अनिवार्यता
पेटेंट का विरोध
डेटा सुरक्षा नियामक
 
पेटेंट कानून संधि, ट्रेडमार्क हेतु सिंगापुर संधि में पारदर्शीता का अभाव
रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार के मज़बूत होने से सबसे अधिक फायदा भारत को ही होगा। उदाहरण के लिये- मज़बूत बौद्धिक संपदा अधिकार के अभाव में बॉलीवुड को प्रत्येक वर्ष 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है। मजबूत बौद्धिक संपदा मानक दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति को मज़बूती प्रदान कर सकते हैं तथा व्यापार करने हेतु एक गंतव्य के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को और मज़बूती दे सकते हैं।
इस प्रकार विदेशी व्यवसायों की निवेश करने की क्षमता तथा ‘मेक इन इंडिया कार्यक्रम’ भारत के अपने अभिनव (Innovative) और रचनात्मक (Creative) उद्योगों के विकास का समर्थन करते है।
 
आगे की राह
भारत की इस वृद्धि को बनाए रखने के लिये भारत को अपने समग्र बौद्धिक संपदा ढाँचे में परिवर्तनकारी बदलाव लाने की दिशा में अभी और काम करने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं मज़बूत बौद्धिक संपदा मानकों को लगातार लागू करने के लिये गंभीर कदम उठाए जाने की भी ज़रूरत है।

जीनोम मैपिंग परियोजना
हाल ही में सरकार ने एक महत्त्वाकांक्षी जीनोम मैपिंग परियोजना (Genome Mapping Project) को मंज़ूरी प्रदान की है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
सरकार की महत्त्वाकांक्षी जीनोम मैपिंग परियोजना को भारत की अनुवांशिक विविधता के निर्धारण की दिशा में पहला प्रयास माना जा रहा है। इस परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 238 करोड़ रुपए है। इस परियोजना में बंगलूरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science- IISc) एवं कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology- IITs) सहित लगभग 20 संस्थान शामिल होंगे। परियोजना से जुड़े भारतीय वैज्ञानिकों के अनुसार, अब तक के आनुवंशिक अध्ययन लगभग 95% सफेद कोकेशियान नमूनों (White Caucasian Samples) पर आधारित थे।
 
परियोजना से संबंधित मुख्य तथ्य
जनवरी, 2020 के अंत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT) द्वारा इस परियोजना को मंज़ूरी प्रदान की गई। इस परियोजना के पहले चरण में देश भर से 10,000 लोगों के नमूनों को एकत्रित किया जाएगा। भारत के आनुवंशिक पूल की विविधता का मानचित्रण वैयक्तिकृत चिकित्सा के आधार पर होगा।    IISc का मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र (Center for Brain Research) जो कि एक स्वायत्त संस्थान है, इस परियोजना के नोडल कार्यालय के रूप में कार्य करेगा तथा इसकी निदेशक प्रो. विजयलक्ष्मी रवींद्रनाथ इस परियोजना की समन्वयक होंगी।
इस परियोजना में शामिल संस्थान परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर काम करेंगे जिसमें नैदानिक नमूने प्रदान करना और अनुसंधान में सहायता करना, इत्यादि शामिल हैं तथा कुछ IITs द्वारा गणना के नए तरीकों में मदद की जाएगी।
इस परियोजना के लिये एक व्यापक डेटाबेस बनाने हेतु दो नई राष्ट्रीय स्तर की विज्ञान योजनाएँ शुरू की जाएंगी।
इन्फोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन द्वारा उम्र बढ़ने और अल्ज़ाइमर जैसे रोगों के लिये IISc में ब्रेन रिसर्च के लिए मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र की स्थापना किये जाने के बाद वर्ष 2017 में इस परियोजना को शुरू करने की दिशा में कदम उठाया गया।
 
परियोजना का महत्त्व
देश में जनसांख्यिकी विविधता और मधुमेह, मानसिक स्वास्थ्य आदि सहित जटिल विकारों वाले रोगों के बोझ को ध्यान में रखते हुए आनुवंशिक आधार की उपलब्धता से किसी रोग की शुरुआत से पहले ही उसकी रोकथाम की जा सकती है।
भारत के आनुवंशिक परिदृश्य का मानचित्रण अगली पीढ़ी के चिकित्सा, कृषि और जैव-विविधता प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
आधुनिक जीवन-शैली से उत्पन्न बीमारियों जैसे- हृदय संबंधी बीमारियाँ, मधुमेह या अन्य मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के लिये, तकनीकी और कंप्यूटेशनल प्रयासों के साथ अधिक सहयोग किये जाने की आवश्यकता है और जीनोम मैपिंग परियोजना के तहत होने वाली खोजें इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी। यह परियोजना कैंसर से जुड़ी मृत्यु दर को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
यह परियोजना दुनिया में अपनी तरह की सबसे महत्त्वपूर्ण परियोजना है और इसके माध्यम से आनुवंशिक अध्ययन के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है। साथ ही देश की आनुवंशिक विविधता का निर्धारण भी किया जा सकता है।
संभावित चिंताएँ
पक्षपात: जीनोटाइप (Genotype) पर आधारित पक्षपात, जीनोम अनुक्रमण का एक संभावित परिणाम है। उदाहरण के लिये, नियोक्ता कर्मचारियों को काम पर रखने से पहले उनकी आनुवंशिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यदि कोई कर्मचारी अवांछनीय तरीके से कार्यबल के प्रति आनुवंशिक रूप से अतिसंवेदनशील पाया जाता है तो नियोक्ता द्वारा उसके जीन प्रारूप/जीनोटाइप (Genotype) के साथ पक्षपात किया जा सकता है। स्वामित्व और नियंत्रण: गोपनीयता और इससे संबंधित मुद्दों के अलावा आनुवंशिक जानकारी के स्वामित्व और नियंत्रण का प्रश्न अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आनुवंशिक डेटा का अनुचित उपयोग: इससे बीमा, रोज़गार, आपराधिक न्याय, शिक्षा, आदि क्षेत्रों में आनुवंशिक डेटा के अनुचित प्रयोग संबंधी चिंताएँ हैं।
 
आगे की राह
जीनोम मैपिंग परियोजना चिकित्सा, आनुवंशिक विविधता आदि की जानकारी जैसे विभिन्न उद्देश्यों को समाहित किये हुए है, इसलिये इस परियोजना के बेहतर क्रियान्वयन की आवश्यकता है।
इस परियोजना में निहित चिंताओं का समाधान किया जाना भी आवश्यक है।

रिज़र्व बैंक विनियमन के तहत आने वाले सहकारी बैंक
5 फरवरी, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सहकारी बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank Of India- RBI) विनियमन के तहत शामिल करने के लिये बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
हाल ही में पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव (Punjab & Maharashtra Cooperative-PMC) बैंक संकट को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल ने यह निर्णय लिया है। 1500 सहकारी बैंकों में कुल 8.6 लाख खाताधारक हैं, जिनकी कुल जमा राशि लगभग 5 लाख करोड़ रुपए है।सहकारी बैंकों के प्रशासनिक मामले सहकारिता रजिस्ट्रार के अंतर्गत ही रहेंगे। हालाँकि अब इन बैंकों को RBI के बैंकिंग दिशा-निर्देशों के तहत विनियमित किया जाएगा। इनकी ऑडिटिंग भी इसके मानदंडों के अनुसार ही की जाएगी। इससे पहले RBI निजी और सरकारी बैंकों को नियंत्रित और विनियमित करता था।
मुख्य कार्यकारी अधिकारियों सहित अन्य सदस्यों की नियुक्तियों के लिये योग्यता का निर्धारण किया जाएगा। प्रमुख पदों पर नियुक्ति के लिये RBI से पूर्व अनुमति लेनी आवश्यक होगी और नियामक ऋण माफी जैसे मुद्दों का निपटान किया जा सकेगा।
वित्तीय संकट में RBI के पास किसी भी सहकारी बैंक के बोर्ड को पृथक करने की शक्ति होंगी।
इन मानकों को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।
बैंक जमा पर 1 से 5 लाख रुपए तक के इंश्योरेंस कवर में वृद्धि करने के सरकार के निर्णय के साथ-साथ प्रस्तावित संशोधनों से सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिरता में वृद्धि होगी तथा बैंकिग व्यवस्था में लोगों का विश्वास बढ़ेगा।
 
सहकारी बैंक
सहकारी बैंक का आशय उन छोटे वित्तीय संस्थानों से है जो शहरी और गैर-शहरी दोनों क्षेत्रों में छोटे व्यवसायों को ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं। सहकारी बैंक आमतौर पर अपने सदस्यों को कई प्रकार की बैंकिंग और वित्तीय सेवाएँ जैसे- ऋण देना, पैसे जमा करना और बैंक खाता आदि प्रदान करते हैं। सहकारी बैंक संगठन, उद्देश्यों, मूल्यों और शासन के आधार पर वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न होते हैं। उल्लेखनीय है कि सहकारी बैंक का प्राथमिक लक्ष्य अधिक-से-अधिक लाभ कमाना नहीं होता, बल्कि अपने सदस्यों को सर्वोत्तम उत्पाद और सेवाएँ उपलब्ध कराना होता है। सहकारी बैंकों का स्वामित्व और नियंत्रण इसके सदस्यों द्वारा ही किया जाता है, जो लोकतांत्रिक रूप से निदेशक मंडल का चुनाव करते हैं। ये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा विनियमित किये जाते हैं एवं बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के साथ-साथ बैंकिंग कानून अधिनियम, 1965 के तहत आते हैं।
सहकारी बैंक सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत किये जाते हैं।


जलवायु परिवर्तन और कृषि
हाल ही में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि उच्च तापमान और सूखे जैसी परिस्थितियों ने मिट्टी में रोगजनक कवक पाइथियम को पनपने में सबसे अधिक योगदान दिया है।
मुख्य बिंदु:
अनुसंधान ने इस वैज्ञानिक प्रमाणिकता को बढ़ाया है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में कृषि उत्पादकता को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। इन निष्कर्षों को एप्लाइड सॉइल इकोलॉजी के अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया गया था।
क्या था प्रयोग का तरीका? वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने मिट्टी के विभिन्न प्रकारों की प्रतिरोध क्षमता का आकलन करने के लिये यूरोप में विभिन्न जलवायु स्थानों से ली गई मिट्टी का उपयोग किया जहाँ ये नमूने शीत (COOL) एवं तर (WET) स्कॉटलैंड, समशीतोष्ण पूर्वोत्तर जर्मनी और शुष्क एवं गर्म पूर्वी हंगरी से एकत्र किये गए थे। जलवायु-नियंत्रित कक्षों में सूखे जैसी परिस्थितियों यथा; अत्यधिक गर्म (40 डिग्री सेल्सियस) और शुष्क (केवल आधी नमी की उपलब्धता) वातावरण वाली मिट्टी में मटर की बुवाई करके कृषि उत्पादकता का परीक्षण किया गया।
 
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:
आमतौर पर मिट्टी में सूक्ष्म जीव उपस्थित रहते हैं जो पौधों के लिये ढाल के रूप में कार्य करते हैं और कवक से उनकी रक्षा करते हैं। हालाँकि उच्च तापवृद्धि ने पौधों की रक्षा के लिये इन सूक्ष्म जीवों की क्षमता को कम कर दिया।
इसने पहले से ही आक्रामक पायथियम (Pythium Ultimum) को और भी व्यापक बना दिया।
Pythium Ultimum: एक पादप रोगजनक है। यह मक्का, सोयाबीन, आलू, गेहूँ, देवदार और कई सजावटी प्रजातियों सहित अन्य सैकड़ों पौधों में युवा रोपों का पतन और मृत्यु (Damping off) तथा जड़-सड़न रोगों (Root Rot Diseases) का कारण बनता है। जो मिट्टी शुष्कता और गर्मी की अत्यधिक प्रतिरोधी होती है, चरम स्थितियों के कारण ठीक नहीं हो पाती है। यहाँ समय आयाम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
 
जलवायु-स्मार्ट कृषि (CSA):
यह एक दृष्टिकोण है, जो बदलती हुई जलवायु में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कृषि प्रणालियों को परिवर्तित और पुनर्जीवित करने के लिये आवश्यक क्रियाओं को निर्देशित करने में मदद करता है। CSA के निम्न तीन मुख्य उद्देश्य हैं:
1.    कृषि उत्पादकता और आय में लगातार वृद्धि प्राप्त करना
2.    जलवायु परिवर्तन के प्रति लोचशीलता का निर्माण करना
3.    ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना या हटाना।
CSA स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करता है तथा विभिन्न हितधारकों को उनकी स्थानीय स्थितियों के अनुकूल कृषि रणनीतियों की पहचान करने में मदद करता है।
CSA, FAO के रणनीतिक उद्देश्यों के तहत संसाधन जुटाने के लिये 11 कॉर्पोरेट क्षेत्रों में से एक है। यह सतत् खाद्य और कृषि के लिये FAO के दृष्टिकोण के अनुरूप है तथा कृषि, वानिकी एवं मत्स्य पालन को अधिक उत्पादक व अधिक टिकाऊ बनाने के लिए FAO के लक्ष्य का समर्थन करता है।
 
आगे की राह:
बढ़ते जलवायु परिवर्तन ने भारतीय मौसम आधारित फसलों की सुभेद्यता को और तीव्र कर दिया है जहाँ नवीन तथा परंपरागत कृषि प्रणालियों यथा- जैविक कृषि, ज़ीरो बज़ट नेचुरल फार्मिंग, परमाकल्चर, प्राकृतिक कृषि आदि को अपनाया जाना चाहिये।


रेपो रेट अपरिवर्तित
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee-MPC) ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये अपनी छठी और अंतिम द्विमासिक नीति समीक्षा बैठक में रेपो दर (Repo Rate) को 5.15% पर ही बनाए रखने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु
RBI ने चलनिधि समायोजन सुविधा (LAF) के तहत नीतिगत रेपो दर को 5.15 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा है। परिणामस्वरूप, LAF के तहत प्रतिवर्ती रेपो दर 4.90 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) दर तथा बैंक दर 5.40 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी है। MPC ने यह भी निर्णय लिया कि (यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर है), जब तक वृद्धि को पुनर्जीवित करना आवश्यक है, निभावकारी रुख बरकरार रखा जाए। RBI ने नीतिगत दरों और अपने रुख को यथावत रखा है लेकिन बैंकों के लिये फंड की लागत कम करने हेतु गैर-परंपरागत उपायों का सहारा लिया। इससे बैंक अपनी उधारी दरों में और कटौती कर सकेंगे, साथ ही उन्हें खपत मांग को पटरी पर लाने के लिये खुदरा उधारी को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।
RBI ने बैंक से स्पष्ट किया कि भविष्य में ज़रूरत पडऩे पर दरों में कटौती की जाएगी। अभी मुद्रास्फीति की दर 7.4 फीसदी है और ऐसी स्थिति में दरों में कटौती की कोई गुंजाइश नहीं है।
RBI ने बैंकों से स्पष्ट कहा है कि यदि वे वाहन, आवास और SME क्षेत्रों को ऋण देते हैं तो उनके जमा आधार में से उतनी रकम कम हो सकती है जिससे उन्हें निर्धारित 4 फीसदी नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में राहत मिल सकती है।
RBI ने बैंकिंग व्यवस्था में नकदी झोंकने और निकालने के तरीकों में भी बदलाव किया है। हालाँकि उसने स्पष्ट किया है कि यदि ज़रूरत पड़ी तो वह परंपरागत तरीके अपनाने से नहीं हिचकेगा। नई व्यवस्था के तहत RBI ने दीर्घकालिक रेपो परिचालन शुरू किया है। ये दो तरह की नकदी प्रतिभूतियाँ होंगी जिन्हें बैंक मौजूदा रेपो दर पर एक वर्ष और तीन वर्ष की अवधि के लिये पैसा उधार लेने हेतु इस्तेमाल कर सकेंगे। हालाँकि इसका इस्तेमाल केवल एक लाख करोड़ रुपए तक के उधार लेने में ही किया जा सकता है।
 
विश्लेषणात्मक रूप से इसका प्रभाव
RBI का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही तक मुद्रास्फीति घटकर 3.2 फीसदी हो जाएगी। हालाँकि अभी काफी अनिश्चितता बनी हुई है। यदि मुद्रास्फीति में RBI के अनुमान के अनुसार कमी आती है तो वह नीतिगत दरों में 25 आधार अंक की कमी कर सकता है। इस स्थिति में रेपो दर 4.9 फीसदी हो जाएगी। मौद्रिक नीति के माध्यम से इससे अधिक सहयोग हेतु वृद्धि करना मुश्किल होगा। यदि अनुमान से अधिक अवस्फीति होती है तो कुछ संभावना बन सकती है। ऐसा कोरोनावायरस के कारण वैश्विक वृद्धि में धीमापन आने से हो सकता है।केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था 6 फीसदी की दर से बढ़ेगी। चूँकि भविष्य में मौद्रिक राहत की गुंजाइश सीमित है इसलिये केंद्रीय बैंक अब प्रेषण और ऋण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
उदाहरण के लिये उसने वाहन, आवास और सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों (MSME) को ऋण देने के मामले में बैंकों को 30 जुलाई, 2020 तक नकद आरक्षित अनुपात बरकरार रखने के मामले में राहत दी है।
RBI ने अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा मझोले उपक्रमों को दिये जाने ऋण का बाह्य मानकीकरण करने का भी निर्णय लिया है। यह अगले वित्त वर्ष के आरंभ में शुरू किया जाएगा। इन हस्तक्षेपों के अलावा RBI एक वर्ष और तीन वर्ष की अवधि के लिये दीर्घावधि की रेपो दर की व्यवस्था भी करेगा। करीब एक लाख करोड़ रुपए की इस राशि से बैंकिंग तंत्र में अधिक पैसा आएगा और ऋण दरों में कमी आएगी। लंबी अवधि के बाॅण्ड और बैंक ऋण दर के मामलों में मौद्रिक पारेषण धीमा रहा है।
उदाहरण के लिये 10 वर्ष के सरकारी बाॅण्ड के मामले में प्रतिफल 76 आधार अंक तक घटा है जबकि नीतिगत दर में 135 आधार अंकों की कमी की गई है।
 
निष्कर्ष
RBI ने जिन नीतिगत हस्तक्षेपों की घोषणा की उनके पीछे इसका उद्देश्य पारेषण में सुधार लाने और बैंकिंग प्रणाली को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित करना है। परंतु इन उपायों से ऋण में सुधार होगा या नहीं यह देखना होगा। उदाहरण के लिये बाह्य मानक से बैंकों के ब्याज मार्जिन पर असर पड़ सकता है। हालाँकि घोषणा के बाद प्रतिफल में कमी आई है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि लंबी अवधि की रेपो दर किस सीमा तक बैंकिंग तंत्र के लिये सहायक साबित होगी। ध्यातव्य है कि वर्तमान में करीब 3 लाख करोड़ रुपए मूल्य की नकदी तरलता मौजूद है। ऐसे में दीर्घावधि की दरें, उच्च सरकारी उधारी और घटती घरेलू बचत के कारण एक विशेष दायरे में सिमट सकती हैं। ऐसी स्थिति में सरकार अनिवासी निवेशकों के लिये विशेष प्रतिभूतियों की घोषणा करके बचत में वृद्धि करने का प्रयास करेगी। इससे मुद्रा की लागत कम करने में तो सहायता मिलेगी लेकिन इससे RBI के नकदी और मुद्रा प्रबंधन के समक्ष चुनौती उत्पन्न हो सकती है।

0 Comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in the comment box.